P. R. Sarkar’s Social Cycle Theory

What you get in this Article –

  • What is Social Cycle Theory?

  • Who were the thinkers of Social Cycle Theory?

  • What is P. R. Sarkar’s Social Theory?

  • What are the social groups that keep replacing one another in a cyclic way?

  • Who are Shudras, Kshatriyas, Vipras and Vaishyas?

  • Who are Sadvipras? How can they stop the Social Cycle?

Social Cycle (सामाजिक चक्र) एक सैद्धांतिक ढांचा है जो विशेष रूप से नेतृत्व (leadership), सत्ता (dominance), और प्रभुत्व के बदलावों (Nature of Societal Change) के संदर्भ में, समाज में परिवर्तन की चक्रीय प्रकृति (Cyclical nature of societal change) को समझाने का प्रयास करता है, । इस सिद्धांत के अनुसार इतिहास एक रेखीय गति नहीं करता है, बल्कि इसकी गति चक्रीय (Cyclical) होती है, जो एक चक्कर लगाने के बाद पुनः उसकी गति पहले के अनरुप ही रहती है। दूसरे शब्दों में, समाज के विभिन्न वर्ग, या समूह एक विशेष क्रम में गति करता है और एक विशेष समयावधि के बाद वही क्रम दुहराता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

सामाजिक चक्र का विचार बहुत प्राचीन है और यह प्रारंभिक सभ्यताओं तथा दार्शनिक चिंतन के साथ जुड़ा हुआ है। यह विचार इस मान्यता को चुनौती देता है कि इतिहास निरंतर प्रगति करता है किंतु इस गति में समाज में विकास, चरम, पतन और पुनरुत्थान जैसे चरण बार-बार आते हैं।

यह विचार प्राचीन भारत, ग्रीस और रोम से शुरू होकर आधुनिक और समकालीन समाजशास्त्रियों एवं दार्शनिकों द्वारा आगे बढ़ाया गया।

भारतीय दर्शन की यह अवधारणा है कि मानव मूल्यों के चक्रीय क्रम में चार युग आते है – सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग।

अरब इतिहासकार, इब्न खलदून (1332-1406) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक -मुकद्दिमा- में सामाजिक चक्र का वैज्ञानिक सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार, सत्ता और साम्राज्य तीन पीढ़ियों में आगे बढ़े है और फिर उनका पतन हुआ है -

  • प्रथम पीढ़ी: मजबूत नेतृत्व और एकता।

  • द्वितीय पीढ़ी: विलासिता और शिथिलता।

  • तृतीय पीढ़ी: मूल्यहीनता और फिर पतन।

इतालवी राजनैतिक दार्शनिक मैकियावेली (1469–1527) ने Discourses on Livy में बताया कि राजनीति में शक्तियाँ चक्रीय रूप से बदलती हैं:

राजशाही तानाशाही कुलीनतंत्र भ्रष्टाचार लोकतंत्र अराजकता पुनः राजशाही।

एक और इतालवी दार्शनिक जियाम्बातिस्ता वीको (1668–1744) ने इतिहास को तीन कालखंडों में विभाजित किया - देवताओं का युग, वीरों का युग, मनुष्यों का युगऔर चक्रवत परिवर्तित होते रहता है।

श्री प्रभात रंजन सरकार का सामाजिक चक्र सिद्धांत (Theory of Social Cycle) गत्यात्मक (dynamic), और वैज्ञानिक (Scientific) है, जो इस प्रश्न का उत्तर देता है कि मानव समाज का विकास समय के साथ कैसे होता है। यह सिद्धांत कहता है कि समाज में अलग-अलग मानसिक प्रवृत्तियों या वर्गों का प्रभुत्व का क्रम चक्रीय होता है।

यह सिद्धांत उनके व्यापक सामाजिक-आर्थिक दर्शन PROUT (प्रगतिशील उपयोग सिद्धांत) का अभिन्न हिस्सा है।

सरकार के अनुसार, समाज का संचालन केवल आर्थिक या राजनीतिक शक्तियों से नहीं होता, बल्कि विभिन्न मानसिक प्रवृत्तियों (mental archetypes) के वर्चस्व से होता है। इन्हें वर्ण कहा गया है, लेकिन ये जन्म आधारित नहीं हैं, बल्कि व्यक्ति की मानसिकता और आचरण पर आधारित होते हैं।

सरकार के अनुसार, समाज में चार प्रमुख वर्ग या वर्ण होते है -

शूद्र (श्रमिक वर्ग) – Labour Group

o मानसिकता: शारीरिक श्रम, साधारण जीवन

o भूमिका: समाज के लिए आवश्यक शारीरिक कार्य

o विशेषताएँ: सहनशीलता, सादगी, नेतृत्व की कमी

o परिणाम: संगठित न होने के कारण शोषण के शिकार बनते हैं

क्षत्रिय (योद्धा वर्ग) – Warrior Group

o मानसिकता: साहस, अनुशासन, शक्ति

o भूमिका: सुरक्षा, शासन का गठन

o विशेषताएँ: वीरता, नेतृत्व क्षमता

o परिणाम: शक्ति का दुरुपयोग होने पर तानाशाही की ओर झुकाव

विप्र (बौद्धिक वर्ग) – Intellectual Group

o मानसिकता: बौद्धिक, धार्मिक, दार्शनिक

o भूमिका: समाज को ज्ञान व विचारधारा से मार्गदर्शन देना

o विशेषताएँ: विवेक, चालाकी, आध्यात्मिक सत्ता

o परिणाम: कट्टरता और मानसिक शोषण की ओर झुकाव

वैश्य (आर्थिक वर्ग) – Economic Group

o मानसिकता: भौतिकवादी, व्यापारी, धन केंद्रित

o भूमिका: व्यापार, उद्योग, अर्थव्यवस्था का विकास

o विशेषताएँ: संसाधनों पर नियंत्रण, दक्षता, लोभ

o परिणाम: आर्थिक शोषण, विषमता और अन्याय

उपर्युगक्त वर्ग एक निर्धारित क्रम में समाज पर प्रभुत्व जमाते हैं:

शूद्र क्षत्रिय विप्र वैश्य शूद्र (क्रांति) पुनः चक्र चलता है

हर वर्ग जब सत्ता में आता है, तो प्रारंभ में सकारात्मक भूमिका निभाता है, लेकिन समय के साथ शोषण और जड़ता की ओर बढ़ता चला जाता है, जिससे कारण क्रांति या बदलाव होता है।

सरकार ने इस चक्र को निष्क्रिय रूप से स्वीकार करने की बजाय, इससे उबरने का उपाय करते है। वे कहते है कि समाज में सद्विप्रों की संख्या बढ़ानी होगी, जो इन चार समूहों या वर्णों को नियंत्रित कर सकें।

सद्विप्र (Sadvipra) कौन है -

  • नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से जागरूक नेता

  • चारों वर्गों से ऊपर उठा हुआ

  • समाज में संतुलन बनाए रखने वाला

  • किसी भी वर्ग को शोषक बनने से रोकने वाला

  • समाज में न्याय, प्रगति और समरसता का पोषक

प्रभात रंजन सरकार का सामाजिक चक्र सिद्धांत इतिहास को एक नैतिक और गतिशील दृष्टिकोण से देखता है, जिसमें कोई भी वर्ग स्थायी रूप से सत्ता में नहीं रहता। उनका मानना है कि सद्विप्र का उदय ही समाज को शोषण से बचा सकता है और उसे एक न्यायपूर्ण, संतुलित और प्रगतिशील दिशा में ले जा सकता है।


Please, share-